मुंबई हमले के एकमात्र जिंदा आतंकी अजमल कसाब को 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई थी। इसके बाद भी इस हमले का चैप्टर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके आकाओं को अब तक सजा नहीं दी जा सकी है।
26 नवंबर 2008 की वो रात भारत कभी नहीं भूल सकता है जब पाकिस्तान के दस आतंकियों ने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई की सड़कों पर खूनी खेल खेला था। उन्होंने 174 लोगों को बड़ी निर्ममता से हत्या कर दी थी जबकि इस घटना में 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। टीवी चैनल के जरिए जब ये खबर पूरे भारत और फिर दुनिया में फैली तो हर कोई हैरत में था। आतंकियों ने इस हमले में मुंबई की शान ताज होटल, होटल ट्राइडेंट, नरीमन प्वाइंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, चाबड़ हाउस, कामा अस्पताल, मेट्रो सिनेमा, लियोपार्ड कैफे को निशाना बनाया था। अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए उन्होंने उन जगहों को चुना था जहां पर भीड़ होती थी और जो यहां की पहचान थे।
ये आतंकी समुद्र के रास्ते भारत में घुसे थे। इसके बाद ये अलग-अलग गुटों में बंट गए थे। ये सभी आतंकी खतरनाक हथियारों से लैस थे। ये सभी आतंकी 23 नवंबर की रात को पाकिस्तान के कराची शहर से एक बोट में निकले थे। भारतीय समुद्री सीमा में दाखिल होने के बाद उन्होंने एक नाव को हथियाकर उसमें सवार सभी चार लोगों को मार दिया था। छह अलग-अलग ग्रुप में बंटे इन आतंकियों ने सबसे पहले रात करीब 9:21 बजे छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू की थी। यहां लगे सीसीटीवी में खूंखार आतंकी अजमल कसाब कैद हुआ था। पूरी दुनिया की मीडिया में कसाब के हाथों में एके-47 लिए हुए फोटो प्रकाशित हुई थी। यहां पर ही कसाब को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वाली मुंबई की देविका रोटावन भी थी। उसने कसाब को गोलियां चलाते अपने आंखों के सामने देखा था। उसके पांव में भी गोली लगी थी। उस वक्त वो महज 8 वर्ष की थी। इसके बाद उसको अस्पताल ले जाया गया था। देविका की गवाही पर कसाब को पुणे की यरवदा जेल में 21 नवंबर, 2012 को फांसी दे दी गई थी।
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