top of page
Writer's pictureab2 news

चीन कभी शांति का हिमायती नहीं रहा, भारत की बुनियाद ही वसुधैव कुटुंबकम पर बनी

नई दिल्‍ली। इस मुहीम में क्वाड के देश काफी मददगार बन सकते हैं। जापान के पास ग्रीन टेक्नोलॉजी का भंडार है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में जापान कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर रहा है। देश के कई अन्य इलाकों में सड़क बनाने से लेकर बुलेट ट्रेन की नींव रखी जा चुकी है। क्वाड में केवल चार देश ही नहीं है। पूर्वी एशिया और यूरोप के तमाम धनी देश अमेरिका के सहयोगी हैं। उनमें से अधिकांश देशों के साथ भारत के संबंध भी मजबूत हैं। क्वाड के द्वारा अगर ग्रीन एनर्जी को लेकर एक सोच बनती है तो चीन के ओबीआर को रोका जा सकता है। करीब 65 देशों में जहां पर चीन अपने आर्थिक विस्तार का तंबू बांध रहा है, उनमें से 25 देशों में विकास की धारा कोयला और ईंधन से चलाई जा रही है। 25 देशों में भी 20 ऐसे हैं, जो गरीब और मौसम परिवर्तन से परेशान हैं, जिसमें बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और अफ्रीका के कई देश शामिल हैं। वर्ष 2015 में पेरिस क्लाइमेट चेंज समझौते में यह बात कही गई थी कि धनी देश लगभग 10 करोड़ डॉलर ग्रीन एनर्जी के लिए गरीब देशों को वार्षिक तौर पर मदद देंगे। इससे ईंधन और कोयले से मुक्ति का रास्ता प्रशस्त होगा। भारत पहले से ही अपनी सार्थक कूटनीति के द्वारा एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड की बात कर चुका है। भारत अगर क्वाड की मदद से ग्रीन एनर्जी का केंद्र बनता है और इंडो-पेसिफिक को ग्रीन तर्ज पर ढालने का उत्तरदायित्व भारत को मिलता है तो बहुत कुछ बदल जाएगा। जो देश चीन के साथ कोयला और ईंधन की व्यवस्था से जूझ रहे हैं, उनके पास एक सस्ता व टिकाऊ विकास का विकल्प होगा। वे चीन का साथ छोड़ कर क्वाड की टोली में शामिल हो जाएंगे। आत्मनिर्भर भारत को एक मुकाम तक पहुंचने में क्वाड कारगर साबित हो सकता है, पर इसके लिए निर्धारित समय में काम पूरा करना होगा। क्वाड के माध्यम से भारत के पड़ोसी देशों के बीच भी साख मजबूत होगी। चीन की वजह से भारत के पड़ोसी देशों में भारत विरोधी लहर पैदा करने की कोशिश चीन के द्वारा पिछले कई दशकों से की जा रही है, जबकि इनका सांस्कृतिक जुड़ाव भारत के साथ वर्षो पुराना है। भारत के पड़ोसी देश भारतीय सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़े हुए हैं।

नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और उत्तर पूर्वी देशों में भारत की अमिट छाप है। भारत ने सिल्क रूट के द्वारा उनके बीच एक समानता और मित्रता की छाप छोड़ी। आज भी भारत की सोच उसी सांस्कृतिक विरासत पर टिकी हुई है, लेकिन दुनिया के तमाम देश जो चीन के बेहतर विकल्प की तलाश में हैं, उन्हें भारत से बेहतर ठिकाना नहीं मिलेगा। चीन की सामरिक शक्ति उसकी आर्थिक मजबूती के कारण ही पैदा हुई, जिस कारण वह अपने पड़ोसी देशों को काटने लगा। उसकी शक्ति का पतन भी आर्थिक ढांचे को तोड़कर ही बनाई जा सकती है। उसके लिए भारत का आत्मनिर्भर बनने से बेहतर विकल्प दुनिया के देशों के पास नहीं हो सकता। भारत की संस्कृति में विस्तारवाद कभी रहा ही नहीं। इसलिए क्वाड के देशों को इस बात पर गंभीरता से सोचना होगा। चीन कभी शांति और व्यवस्था का हिमायती नहीं रहा है, जबकि भारत की बुनियाद ही वसुधैव कुटुंबकम पर बनी है, जिसमें पूरा विश्व ही एक परिवार है।

0 views0 comments

Comments


Post: Blog2_Post
bottom of page