कोलंबो, एपी। चीन ने कर्ज जाल में फंसे श्रीलंका की गुहार पर उसे नौ करोड़ डॉलर (656 करोड़ भारतीय रुपये) की अनुदान राशि देने की घोषणा की है। यह राशि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा उपकरणों, शिक्षा सहायता और जलापूर्ति व्यवस्था के लिए दी जाएगी। यह राशि श्रीलंकाई नागरिकों को कोविड बाद के हालात से मुकाबले के लिए दी जा रही है। हाल में श्रीलंका आए चीन के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सहायता की अपील की थी।
इसी के बाद कोलंबो स्थित चीन के दूतावास ने इस आर्थिक सहायता की घोषणा की। इस सहायता के स्वरूप को लेकर असमंजस बनाए रखा गया है। इसे श्रीलंका को वापस भी करना पड़ सकता है। श्रीलंका आए प्रतिनिधिमंडल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो के सदस्य और पूर्व विदेश मंत्री यांग जीएची भी शामिल थे। राष्ट्रपति राजपक्षे से चीनी प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात में कर्ज में फंसे चीनी निवेश वाली परियोजनाओं पर वार्ता हुई।
चीन की वन बेल्ट-वन रोड परियोजना (ओबीओआर) का श्रीलंका अहम भागीदार है। इस परियोजना के तहत चीन ने पिछले दशक में श्रीलंका में बंदरगाह, हवाई अड्डे, शहर, राजमार्ग और बिजलीघर बनाने के अरबों डॉलर के निवेश वाले कार्य शुरू किए हैं। इनमें कई परियोजनाएं ऐसी हैं जो आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं हैं। भविष्य में भी इनका इस्तेमाल होने की कोई संभावना नजर नहीं आती। इसके चलते श्रीलंका चीन के कर्ज में फंस गया है।
कोरोना संक्रमण के दौर ने उसकी हालत और पतली कर दी है। इधर चीन उस पर कर्ज चुकाने के लिए दबाव बढ़ा रहा है, तो तंगहाल श्रीलंका रोजमर्रा के खर्चों के लिए परेशान हो रहा है। इन्हीं हालातों में श्रीलंका ने कर्ज चुकाने के लिए 2017 में हंबनटोटा का बंदरगाह चीन को 99 साल के पट्टे पर दे दिया था।
इस बंदरगाह को व्यावसायिक इस्तेमाल की संभावना न होने पर भी चीन ने विकसित किया था। अब चीन इस बंदरगाह से मध्य श्रीलंका तक जाने वाला एक्सप्रेस वे बनाने के लिए 98.9 करोड़ डॉलर (7,216 करोड़ भारतीय रुपये) का कर्ज देने के लिए तैयार हो गया है। मध्य श्रीलंका का यह इलाका चाय उत्पादक क्षेत्र है। यह एक्सप्रेस वे श्रीलंका के लिए कितना उपयोगी साबित होगा, यह तो समय बताएगा लेकिन वह चीन के कर्ज के जाल में उलझता जा रहा है।
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