वेश्यावृत्ति (Prostitution)-
जब कोई स्त्री किसी पुरुष से जो उसका पति नहीं है अथवा पुरुष किसी स्त्री से जो उसकी पत्नी नहीं है, यौन सम्बन्ध स्थापित करती/करता है और उसके बदले में धन या अन्य किसी प्रकार की वस्तु या सेवा प्राप्त करता, करती है तो उसे सामान्य रूप से वेश्याव॒त्ति माना जाता है। स्त्रियों एवं कन्याओं के अनैतिक व्यापार (निरोधक) अधिनियम 1956 (Suppression of Immoral Traffic Prevention Act, 1956-SITA) के अनुसार वेश्या वह स्त्री है जो कि धन या वस्तु के बदले में अवैध यौन सम्बन्धों के लिए अपना शरीर पुरुष को सौंपती है। इस प्रकार अवैध सम्बन्ध के लिए शरीर अर्पित करना वेश्यावत्ति कहलाती है।
आधुनिक समाज में वेश्याओं को विभिन्न आधारों पर अनेक श्रेणियों में बांटा जाता है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से वर्तमान युग में प्रायः तीन प्रकार की वेश्याएं होती हैं-
1. वे वेश्याएं जो संगठित अड्डों पर देह बेचती हैं और जिनका नियंत्रण अड्डे के मालिकों के हाथ में रहता है।
2. वे वेश्याएं जो सर्वथा स्वतंत्र रूप से अपना व्यवसाय चलाती हैं।
3. वे स्त्रियां जो पूर्णरूप से वेश्या नहीं हैं किन्तु पारिवारिक जीवन में रहते हुए भी कीसी लाभ हेतु या चोरी-छिपे या नीजि शौक के लीये इस व्यवसाय को अपनाती हैं।
यह माना जाता है कि वेश्यावृत्ति सबसे पुराना पेशा है। यह सबसे पुराना पेशा हो या न हो लेकिन यह विश्व के सभी समाजों में पाया जाता है। भारत जैसे समाज में जहाँ महिलाओं की यौन-आकांक्षा उच्चस्तर के मूल्य और मानकों से जुड़ी हो, उसे यौन-आकांक्षा पर स्वतंत्रता नहीं दी गई है और उसकी इस इच्छापूर्ति का अधिकार पति को दिया गया है। भारतीय समाज में वेश्यावृत्ति संस्कृति के विपरीत कार्य के तौर पर देखा जाता है। फिर भी वेश्यावृत्ति समाज का अभिन्न हिस्सा है। सामान्य रूप से हर शहर के एक हिस्से को वेश्यावत्ति वाला इलाका या रेड लाइट इलाके के रूप में जाना जाता है। वेश्यावत्ति को सामाजिक कलंक मानने के कारण यह एक सामाजिक समस्या के रूप में जानी जाती है। भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन वेश्यावत्ति में शामिल यौन-कर्मियों को गरिमापूर्ण जीवन नसीब नहीं हो पाता है। इस तरह देखा जाए तो वे देश के ऐसे नागरिक होते हैं जिन्हें समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है। भारत में वेश्याओं को सामान्य श्रम कानूनों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है लेकिन उनके बचाव एवं पुनर्वास का प्रयास किया जाता है।
भारत में वेश्याव॒त्ति का सबसे प्रमुख कारण गरीबी को माना जाता है। इस पेशे को अपनाने वाली ज्यादातर महिला लाचारीवश ही इसे अपनाती हैं। वे सामान्यतः: अशिक्षित भी होती हैं और उनके पास किसी कार्य का विशिष्ट कौशल भी नहीं होता है। दुर्भाग्य से यदि ऐसी महिलाओं का सामना दलालों से हो जाए तो उनके इस पेशा में आने की सम्भावना बढ़ जाती है। कई माता-पिता गरीबी से तंग आकर अपनी बेटियों को बेच देते हैं। उनका यह भी मानना होता है कि घर के मुकाबले चकलाघर में उसकी बेटी का जीवन बेहतर होगा। कई महिलाओं एवं लड़कियों को उनके रिश्तेदारों, पति एवं पुरुष-मित्रों द्वारा भी इस पेशे में धकेला जाता है। कई लोग महिलाओं को शादी या नौकरी का झांसा देकर उन्हें चकलाघर पहुंचा देते हैं। कई बार पड़ोसी देशों से लड़कियों को बहुत कम पैसे में खरीदकर इस पेशे में शामिल किया जाता है। यह भी देखा गया है कि सड़क के किनारे भीख मांगने वाली लड़कियों को भी चकलाघर तक पहुंचा दिया जाता है। इन महिलाओं एवं लड़कियों की स्थिति चकलाघर में बन्द कैदियों जैसी ही होती है। भारत के कूछ राज्यों में धार्मिक रीति-रिवाजों और रूढ़ियों के कारण भी कूछ स्त्रियों को वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। ओड़िशा, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कुछ धार्मिक केन्द्रों में यह प्रथा बनी हुई है। दक्षिण भारत में इसे देवदासी प्रथा, महाराष्ट्र में मुरली, कर्नाटक में 'वासवी' एवं 'नामिका' आदि कहा जाता है। यह प्रथा धार्मिक वेश्यावृत्ति की श्रेणी में आती है।
लड़कियों की शिक्षा पर निबंध
शिक्षा जीवन जीने का एक अनिवार्य हिस्सा है चाहे वह लड़का हो या लड़की हो। महिला के अधिकारों की रक्षा में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकने में भी मदद करती है। शिक्षा महिलाओं को जीवन के मार्ग को चुनने का अधिकार देने का पहला कदम है जिस पर वह आगे बढ़ती है। एक शिक्षित महिला में कौशल, सूचना, प्रतिभा और आत्मविश्वास होता है जो उसे एक बेहतर मां, कर्मचारी और देश का निवासी बनाती है। महिलाएं हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। पुरुष और महिलाएं सिक्के के दो पहलूओं की तरह हैं और उन्हें देश के विकास में योगदान करने के समान अवसर की आवश्यकता होती है See more...
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