कांग्रेस में राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में प्रवेश के 9 वर्ष बाद ही कांग्रेस ने उन्हें गुजरात के पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी थी। 1977 में दोबारा आम चुनाव हुए तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सेानिया गांधी के बेहद करीबी नेता अहमद पटेल का निधन होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पटेल एक माह से कोरोना पॉजिटिव थे। ये झटका ऐसे समय में लगा है जब पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ है। ऐसे ही घमासान से पार्टी को निकालने के लिए अहमद पटेल हमेशा ही सक्रिय भूमिका में रहते थे। पटेल 2001 से सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे। वर्ष 2004 और 2009 में हुए चुनाव में पार्टी को मिली जीत का श्रेय भी पटेल को ही दिया जाता है।
ऐसे ही राजनीतिक करियर की शुरुआत
उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत गुजरात के भरूच में हुए नगरपालिका के चुनाव से 1976 में हुई थी। इसके बाद वो यहां की नगरपालिक के सभापति बने। बाद में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम और धीरे-धीरे उनके राजनीति को एक नया मुकाम मिलता चला गया। उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में प्रवेश के 9 वर्ष बाद ही कांग्रेस ने उन्हें गुजरात के पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इंदिरा गांधी के शासन में लगे आपातकाल के बाद जब 1977 में दोबारा आम चुनाव हुए तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद पटेल की राजनीतिक जमीन इस कदर मजबूत थी कि उन्होंने इस चुनाव में जीत हासिल की और कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंच गए। पटेल तीन बार (1977, 1980,1984) लोकसभा सदस्य और पांच बार (1993,1999, 2005, 2011, 2017) राज्यसभा सांसद रहे। वर्तमान में वो राज्यसभा सदस्य थे।
इंदिरा गांधी के भी रहे करीबी
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी सत्ता में आए तो 1985 में उन्होंने पटेल को अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1987 में उन्होंने बतौर सांसद सरदार सरोवर प्रोजेक्ट की निगरानी के लिए बनाई गई नर्मदा मैनेजमेंट ऑथरिटी के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। 1988 में उन्हें जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव नियुक्त किया गया। नई दिल्ली स्थित इस भवन का निर्माण पटेल की ही निगरानी में हुआ था। उनके राजनीतिक करियर के लिए ये एक मील का पत्थर भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्रोजेक्ट काफी समय से ठंडे बस्ते में था। पटेल के जिम्मेदारी संभालते ही उन्होंने इसको महज एक साल के अंदर ही पूरा कर दिखाया। इसके बाद पार्टी के अंदर उनका राजनीतिक कद तो बढ़ा ही साथ ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ भी उनकी नजदीकी बढ़ती चली गई। इस भवन को तकनीकी रूप से आगे करने का भी श्रेय पटेल को ही दिया जाता है। इस भवन को कांग्रेस सांसद और पार्टी सदस्य के पैसे से किया गया था।
पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार
वर्ष 2005 में सोनिया गांधी ने उन्हें प्रमुख रणनीतिकार नियुक्त किया था। उन्होंने 14वीं और 15वीं लोकसभा के लिए यूपीए के गठन का सुझाव दिया था। इसके बाद उन्होंने इसके तहत बनने वाली सरकार के लिए जरूरी नंबर जुटाने में भी अहम भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद भी पटेल मीडिया की सुर्खियां बनने से दूर ही रहते थे। पर्दे के पीछे पार्टी को लेकर किए गए अपने कामों के जरिए वो कई बार संकटमोचन की भूमिका में भी दिखाई दिए। अहमद पटेल दूसरे ऐसे मुस्लिम नेता थे जो गुजरात से लोकसभा के लिए चुने गए थे। इससे पहले एहसान जाफरी को ये मुकाम हासिल हुआ था।
सोनिया ने दी पटेल तवज्जो
सोनिया गांधी ने न सिर्फ पटेल की पार्टी और शीर्ष नेतृत्व के प्रति उनकी निष्ठा को पहचाना बल्कि इसको पूरी तवज्जो भी दी। पटेल ने राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव के अलावा सोनिया के संसदीय सचिव की भी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सोनिया गांधी ने ही उन्हें पार्टी के ट्रेजरार की जिम्मेदारी भी सौंपी। इससे पहले ये जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा के पास थी।
लगातार बढ़ा राजनीतिक कद
तो कांग्रेस का दामन थामने के बाद से ही पटेल का कद कांग्रेस में लगातार बढ़ता ही गया लेकिन कई मोर्चों पर इसका पता भी साफतौर पर चला था। यूपीए सरकार के दौरान (2004-2014) करीब एक दशक तक पार्टी के लिए वो संकटमोचक की भी भूमिका में दिखाई दिए। इतना ही नहीं इसके बाद भी उन्होंने इस भूमिका को काफी हद तक सफलतापूर्वक निभाया। 2019 में महाराष्ट्र में बनने वाली सरकार के गठन को लेकर जो अशांति शुरुआत में दिखाई दी थी उसको शांत करने अपने नेताओं को एकजुट रखने में भी उन्होंने अहम जिम्मेदारी निभाई थी। पार्टी के अंदर छिड़े या मचे किसी भी तरह के घमासान को शांत करने या इसके बाबत मीडिया में पार्टी के विचार रखने के लिए कांग्रेस हमेशा ही उन्हें आगे करती थी।
जमीन से जुड़े नेता थे पटेल
वो एक जमीन से जुड़े नेता थे जो जानते थे कि आम आदमी से लेकर पार्टी सदस्य और शीर्ष नेतृत्व उनसे किस तरह की अपेक्षा रखता है। इसको पूरा करने में भी वो पूरी तरह से सफल रहे। 2005 में उन्होंने गुजरात के भरूच में राजीव गांधी विद्यतीकरण योजना की शुरुआत की। इसके अलावा भरूच और अंक्लेश्वर के बीच पुल का निर्माण करवाया। इसकी वजह से दोनों शहरों के बीच आवाजाही तो सुलभ हुई ही साथ ही इनके कनेक्टेड रास्तों पर लगने वाले जाम से भी निजात मिल सकी। पार्टी के अंदर भी सभी सदस्य पटेल के राजनीतिक कद से बखूबी वाकिफ थे।
Comments