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कोरोना काल में लोगों ने तेजी से अपनाया डिजिटल पेमेंट, ‘ऑनलाइन’ लेन-देन में 80 प्रतिशत की वृद्धि


छोटे एवं मझोले शहरों मे तेजी से भुगतान के लिए डिजिटल माध्यमों को अपनाये जाने से देश में ‘ऑनलाइन’ माध्यम से लेन-देन 2020 में 80 प्रतिशत बढ़ गया। फाइनेंस टेक्नोलॉजी कंपनी रेजरपे ने एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।


छोटे एवं मझोले शहरों मे तेजी से भुगतान के लिए डिजिटल माध्यमों को अपनाये जाने से देश में ‘ऑनलाइन’ माध्यम से लेन-देन 2020 में 80 प्रतिशत बढ़ गया। फाइनेंस टेक्नोलॉजी कंपनी रेजरपे ने एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में बतया गया है कि मोबाइल के माध्यम से तुंरत भुगतान की सुविधा यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) की बात की जाए तो इसके जरिये बहुत तेजी से लेनदेन हुआ है और इसने 2020 में 120 प्रतिशत की वृद्धि रही है, और इस तरह कार्ड, नेटबैंकिंग और मोबाइल बटुए पीछे छूट गए हैं।


इस तकनीक का इस्तेमाल विशेष तौर पर छोटे एवं मझोले शहरों (टियर 2 और 3) में तेजी से अपनाया गया है।

मालूम हो कि रेजरपे डिजिटल लेन-देन की सुविधा उपलब्ध कराती है, इसने कहा कि ‘लॉकडाउन’ के दौर में शुरू में उसके माध्यम से डिजिटल भुगतान में गिरावट रही और यह 30 प्रतिशत तक चला गया, लेकिन बाद में 70 दिन के पहले ‘लॉकडाउन’ के बाद डिजिटल भुगतान में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई।


रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के मुकाबले 2020 में ‘ऑनलाइन’ लेन-देन में 80 प्रतिशत का इजाफा देखा गया है। इससे यह संकेत मिलता है कि ग्राहकों और कंपनियों ने बड़ी संख्या में डिजिटल भुगतान के माध्यम को अपनाया। कुछ क्षेत्रों की कंपनियों में धीरे-धीरे पुनरूद्धार दिखने शुरू हुए तब डिजिटल भुगतान में वृद्धि अंतिम छह महीने में तेजी से हुई। डिजिटल भुगतान में तेजी की बात की जाए तो 2020 में जुलाई-दिसंबर के दौरान पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इसमें 73 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है।


बता दें कि कोरोना के समय से ही डिजिटल भुगतान पर जोर दिया जा रहा है, सरकार भी लोगों से डिजिटल पेमेंट अपनाने को कह रही है। इस कड़ी में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पिछले दिनों भारत सरकार की ओर से डिजिटल कैलेंडर और डायरी लांच की। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस साल कैलेंडर और डायरी नहीं छपवाया है जिससे सरकार के करीब पांच करोड़ रुपये बच गए हैं। मंत्रालय के मुताबिक, हर साल 11 लाख कैलेंडर और 99 हजार डायरियां छपवाई जाती हैं। पिछले साल कैलेंडर और डायरियां छपवाने में सात करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस वर्ष नहीं छपवाने से खर्च में पांच करोड़ रुपये की बचत हो गई।

 
 
 

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