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महिलाओं से जुड़े गंभीर मुद्दे को बंद दरवाज़ों से निकालकर सामने लाती है वेब सीरीज़


क्रिमिनल बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स की कहानी एकदम सीधी और प्रेडिक्टेबिल है। लेखक ने इसे स्क्रीनप्ले के ज़रिए खामखां उलझाने की कोशिश भी नहीं की है। फोकस थ्रिलर कोशेंट से अधिक मुद्दे पर रहा है। विक्रम चंद्रा के किरदार की परतें सीरीज़ शुरू होने के साथ ही खुलने लगती है।

2020 का पर्दा गिरने से चंद रोज़ पहले एक और बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज़ 'क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' दर्शकों के मोबाइल और लैपटॉप तक पहुंच चुकी है। हॉटस्टार स्पेशल्स की अगली पेशकश के रूप में वेब सीरीज़ 24 दिसम्बर को डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर 7 भाषाओं में रिलीज़ हो गयी। 'क्रिमिनल जस्टिस- बिहांइड क्लोज़्ड डोर्स' कुल आठ एपिसोड्स में फैली हुई है और हर एक एपिसोड की अवधि लगभग एक घंटा है। 'क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' के किसी और पहलू की चर्चा छेड़ने से पहले इसके लेखक अपूर्व असरानी का ज़िक्र करना ज़रूरी है। सालों तक फ़िल्म एडिटर रहे अपूर्व की बतौर राइटर पहली फीचर फ़िल्म 'अलीगढ़' थी, जिसे हंसल मेहता ने निर्देशित किया था। जिन लोगों ने 'अलीगढ़' देखी है, वो अपूर्व लिखित 'क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' की सार्थकता और अनिवार्यता को आसानी से समझ सकेंगे। 'अलीगढ़' के ज़रिए समलैंगिक समुदाय के दर्द और कसक को रेखांकित करने वाले अपूर्व ने इस वेब सीरीज़ के ज़रिए महिलाओं से जुड़े एक ऐसे मुद्दे को बंद दरवाज़ों के पीछे से निकालकर फ्रंट में लाने का काम किया है, जिसे अक्सर मुद्दा समझा ही नहीं जाता। 'क्रिमिनल जस्टिस-बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' एक कोर्ट ड्रामा होने के साथ अपूर्व के मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करने के मिशन को आगे बढ़ाती है।


वेब सीरीज़ की कहानी बस इतनी सी है कि बिक्रम चंद्रा (जिशु सेनगुप्ता) बॉम्बे हाई कोर्ट का एक नामी और कामयाब वकील है। घर में पत्नी अनुराधा चंद्रा (कीर्ति कुल्हरी) और 12 साल की बेटी रिया (अदरीजा सिन्हा) है, जो स्कूल में पढ़ती है। अनुराधा खोई-खोई सी रहती है। उसको डिप्रेशन और तनाव है, जिसका इलाज डॉ. मोक्ष सिंघवी (अयाज़ हुसैन ख़ान) के यहां चल रहा है। सिंघवी की बेटी रिद्धि, रिया की दोस्त है। दोनों परिवार एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं।


बिक्रम और अनुराधा की ज़िंदगी मुकम्मल लगती है, मगर एक रात अनुराधा बिक्रम की चाकू मारकर जान लेने की कोशिश करती है। विक्रम गंभीर रूप ज़ख़्मी हो जाता है। अनुराधा के इस क़दम से हर कोई हैरान है। बिक्रम की साफ़-सुथरी छवि और मिलनसार स्वभाव की वजह से अनुराधा को किसी से सहानुभूति नहीं मिलती।

यहां तक कि बेटी रिया भी उससे नफ़रत करने लगती है। अनुराधा पुलिस के समक्ष इकबाले-जुर्म कर लेती है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रघु सालियान (पंकज सारस्वत) वकील माधव मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) को उसका केस लड़ने के लिए बुलाते हैं, क्योंकि कोई दूसरा वकील अनु चंद्रा का केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है।


माधव उसे समझाता है कि कोर्ट में नॉट गिल्टी प्लीड करना। मगर, अपराध बोध से ग्रस्त अनुराधा अदालत में भी अपना जुर्म कुबूल कर लेती है। माधव मिश्रा के लाख समझाने के बावजूद उसकी चुप्पी नहीं टूटती। इस बीच बिक्रम की अस्पताल में मौत हो जाती है और अनुराधा पर हत्या की कोशिश के बजाय क़त्ल करने की धाराएं लग जाती हैं।

अनुराधा को बचाने के लिए माधव के सामने एक ही रास्ता है कि वो ख़ुद इनवेस्टीगेशन करके सही और ग़लत का पता लगाये। मगर अनु चंद्रा की चुप्पी उसके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। माधव के इनवेस्टीगेशन और ट्रायल के दौरान कई चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं और ऐसे राज़ खुलते हैं, जो आज के दौर में भी महिलाओं के अधिकारों को लेकर सवाल खड़े करते हैं।


'क्रिमिनल बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' की कहानी एकदम सीधी और प्रेडिक्टेबिल है। लेखक ने इसे स्क्रीनप्ले के ज़रिए खामखां उलझाने की कोशिश भी नहीं की है। छोटे-छोटे ट्विस्ट एंड टर्न्स के साथ फोकस थ्रिलर कोशेंट से अधिक मुद्दे पर रहा है। विक्रम चंद्रा के किरदार की परतें सीरीज़ शुरू होने के साथ ही खुलने लगती है। जिस वजह से बिक्रम की पत्नी उसका क़त्ल करने के लिए मजबूर हो जाती है और पूरी सीरीज़ का सार जिस पर टिका है, उस अहम वजह का अंदाज़ा भी दर्शक को शुरुआती दृश्यों में हो जाता है। हालांकि, इसका सही-सही खुलासा आख़िरी एपिसोड में किया जाता है।


मगर, इसके बावजूद 'क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' उत्सुकता बनाये रखती है। इसका बहुत बड़ा श्रेय कहानी में इमोशंस और सीरीज़ के कलाकारों को जाता है। संघर्षरत वकील माधव मिश्रा जितना सहज है, उतना ही शातिर भी। पंकज त्रिपाठी ने माधव मिश्रा को पूरी शिद्दत से निभाया है। गंभीर कहानी में माधव और उसकी पत्नी रत्ना के बीच नोकझोंक सुकूनभरी लगती है।


अनुराधा चंद्रा की ख़ामोशी को कीर्ति कुल्हरी ने अपने अभिनय से गहरा कर दिया है। एक ऐसी पत्नी, जो सभी सुख-सुविधाओं के बीच इस डर के साथ जी रही है कि उसके पति को उसकी कोई बात बुरी ना लग जाए। अनुराधा पढ़ी-लिखी है, मगर हीनता के भाव ने उसका आत्म-विश्वास डिगा दिया है। कीर्ति इस द्वंद्व को ज़ाहिर करने में कामयाब रही हैं। माधव मिश्रा की सहयोगी निखत हुसैन के रोल में अनुप्रिया गोयनका ने अपनी मौजूदगी से प्रभावित किया है।


बिक्रम चंद्रा के किरदार की डार्क साइड को जिशु सेनगुप्ता कामयाबी के साथ बाहर लेकर आये हैं। अन्य कलाकारों में दीप्ति नवल (विक्रम चंद्रा की मां विज्जी चंद्रा), मीता वशिष्ठ (सीनियर लॉयर मंदिरा माथुर), आशीष विद्यार्थी (पब्लिक प्रोसीक्यूटर- धीपन प्रभु), शिल्पा शुक्ला (ईशानी नाथ- क़ैदी), कल्याणी मुले (महिला पुलिस अधिकारी गौरी प्रधान), अजीत सिंह पहलावत (इनवेस्टिगेटिंग ऑफ़िसर हर्ष प्रधान और गौरी प्रधान का पति), खुशबू आत्रे (रत्ना मिश्रा- माधव मिश्रा की पत्नी) ने अपनी अदाकारी से सीरीज़ की रवानगी बनाये रखी है।


'क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स' मुख्य चरित्र के ज़रिए शादी-शुदा ज़िंदगी में जहां डोमेस्टिक एब्यूज़ के बड़े मुद्दे को सामने लाती है, वहीं अन्य स्त्री किरदारों के ज़रिए महिलाओं से जुड़ी कई ऐसी महीन बातों को रेखांकित करती है, जो धीरे-धीरे उनके वजूद को कमज़ोर बनाने की साजिश करती हैं।


आज के दौर में समानांतर चलने वाले मीडिया ट्रायल पर भी सीरीज़ कमेंट करती हैं, जिसे आशीष विद्यार्थी के किरदार के ज़रिए दिखाया गया है, जब वो मीडिया ट्रायल को सही-ग़लत कहने के बजाय इसका इस्तेमाल अपने पक्ष में करने पर ज़ोर देता है। रोहन सिप्पी और अर्जुन मुखर्जी का निर्देशन सधा हुआ है। सीरीज़ को बिखरने नहीं देता। संवेदनशील कहानी को निर्देशकों ने बहुत अधिक नाटकीयता से बचाकर रखा है। महिला जेल के दृश्य प्रभाव छोड़ते हैं।


कलाकार- पंकज त्रिपाठी, कीर्ति कुल्हरी, अनुप्रिया गोयनका, दीप्ति नवल, मीता वशिष्ठ, कल्याणी मुले, शिल्पा शुक्ला, अदरीजा सिन्हा आदि।

निर्देशक- रोहन सिप्पी और अर्जुन मुखर्जी।

निर्माता- एप्लॉज़ एंटरटेनमेंट, बीबीसी स्टूडियोज़।

वर्डिक्ट- *** (तीन स्टार)


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