चार चुनावों के 820 में से 351 सांसदों, विधायकों पर एक मामला नहीं, 469 सांसदों, विधायकों के खिलाफ दर्ज हैं केस
पटना| शायद ही ऐसा कोई चुनाव जिसमें अपराध मुद्दा न बनता हो। राजनीतिक दल ही अपराध को मुद्दा बनाते हैं लेकिन अपराधी छवि वाले जीतने वाले नेताओं को ‘अछूत’ नहीं मानते और जनता भी ऐसे उम्मीदवारों को हाथों हाथ लेती है। यह खुलासा हुआ है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म (एडीआर) और बिहार इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट में।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, साफ छवि वाले उम्मीदवारों के मुकाबले आपराधिक छवि वाले नेताओं की जीता का आंकड़ा तीन गुना अधिक है। इसके अनुसार, बिहार में साफ छवि के साथ चुनाव जीतने की महज 5%, जबकि आपराधिक मामलों के साथ चुनाव जीतने की संभावना 15% तक है। एडीआर और इलेक्शन वॉच ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सांसदों, विधायकों और उम्मीदवारों के वित्तीय व आपराधिक मामलों का विश्लेषण किया है।
2005 से 2019 तक के चुनावों पर बनी है रिपोर्ट
यह रिपोर्ट 2005, 2010, 2015 के विधानसभा और 2009, 2014, 2019 के लोकसभा चुनावों व उपचुनावों के पहले उम्मीदवारों द्वारा दिए गए शपथ पत्र पर आधारित है। इसमें दिलचस्प यह भी है कि 2005 से चुनाव लड़ने वाली 779 में से 151 (19%) महिला उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक और 94 (12%) ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
वहीं 10006 में से 3079 (31%) पुरुष उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक और 2110 (21%) ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। खासबात यह है कि 2005 से चुनाव जीतने वाली 90 में से 30 (33%) महिला सांसदों, विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक और 18 (20%) ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। 2005 से चुनाव लड़ने वाले 10785 उम्मीदवारों में से केवल 779 (7%) महिला उम्मीदवार हैं
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