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शादी

आजकल नया सवाल या नई समस्या खड़ी हो रही है कि अक्सर युवा लड़का लड़की इस सवाल को किसी अनुभवियों से पूछ रहे है कि क्या वो शादी करें ? क्या ये उनके लीये सही है या गलत ?

शादी, आजसे महज सौ साल पहले तक शादी इस पांच बातो को ध्यान में रखकर की जाती थी, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक और व्यक्तिगत, आजसे सौ साल पहले तक इनमें से चार कारण प्रबल भी थे जिसके चलते औरत या मर्द शादी करना चाहे या न चाहे किन्तु शादी कर लेता था। व्यक्तिगत को छोड़कर बाकी के चार कारण ऐसे थे भी जो शादी करने पर विवश करते थे, आज लगभग सौ साल बाद जो बदलाव आया है उसमें वही चार कारण बहोत पीछे छूट गये जिसमें मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक मुख्य थे। आज के नये दौर में ये चारों कारण पर युवा युवतियो का विजय प्राप्त है।

आज के दौर में लड़का या लड़की की ऐसी कोई मजबूरी नही की वो आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रुप से कमजोर या असक्षम हो, सामाजिक बंधन तो आजके युवा युवतियो को है ही नही, बचता है केवल व्यक्तिगत नजरिया, अगर यस तो यस ओर नो तो नो। पहले के दौर में शादी का महत्व केवल दो विजातीय शरीर की भूख या प्यास का कारण नही था, इसका सामजिक, आर्थिक और मानसिक महत्व था। इसलिये दो भिन्न भिन्न शरीरो को जोड़ के जो बंधन बनता था वो बंधन शादी थी। ओर इससे दो परीवार प्रगति की राह भी थामते थे। अब ऐसा नही है, शादी अब व्यक्तिगत ही बन बची।

आज बचा है तो व्यक्तिगत नजरिया बचा है ओर दूसरा शारीरक नजरिया। व्यक्तिगत मतलब क्या ? व्यक्तिगत मतलब भावनात्मक, लागणी ओर शरीर। अगर किसी को लगता है कि उनकी शारीरिक जरुरते उनके बस में नहीं है, अगर किसी को लगता है कि उनकी भावनाएं उनके बस में नहीं है तब वो ही लोग आजके दौर में शादी पसंद करते है, शादी कोई सामाजिक बंधन नही है, यदि किसीको लगता है कि नियमित रुप से उसको सेक्स चाहिए, नियमित रुप से उसको भावनात्मक साथी चाहिए तो शादी ही वो विकल्प है जिससे उसकी अनियमितता का नाश हो शकता है।

शादी युगों पहले भी कोई सामाजिक बन्धन नही थी और आज के दौर में तो वो बिल्कुल बंधन नही है। शादी व्यक्ति की निजी जरुरतों के लिये जरुरी है। अगर किसीको लगता है कि वो बिना शादी किये अपनी शारीरिक जरूरतें, बिना शादी किये अपनी मानसिक जरूरतें, बिना शादी किये अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी कर शकता है तो उनको सामाजिक कोई दबाव नही है कि उसे शादी करनी ही चाहिए। हाँ सामाजिक दबाव उस पर यह जरुर है कि उसे उनकी शारीरिक जरुरतों के लीये बदलते रहते पार्टनर को समाज से छिपाना पड़ता है, मानसिक जरूरतों के लिए वो जिसके साथ घुमना, मिलना पसंद करते है उसे समाज से छिपाना पड़ता है। क्योंकि समाज का दबाव इतनाभर ही अब है कि उसे अगर छिपाया न गया तो समाज से ही कोई हिस्सेदारी मांग बैठेगा, उस सकस से जो छिपा नहीं पाया। आज के दौर में बस सामाजिक दबाव इतना भर रह है। अस्सल में सामाजिक दबाव पहले जितना था उतना आज नही है क्योंकि आज के दौर में सामाजिक नजरिया लुप्त है। अब बचे है तो समाज के वो चबराक जो बिना मेहनत और दिमाग लगाए किसीकी बनी बनाई महेनत ले उड़े।


क्या फायदा है शादी से ?

शादी से फायदा ये है कि दिमाग को कभी वो दबाव नही आएगा क्योंकि उसने अपनी सभी जरूरतों के लिए एक साथी का चुनाव कर लिया है।।


क्या नुकशान है शादी से ?

शादी से नुकसान ये है कि एक बंधन को बंधे रहोगे। जो कि कोई बंधन तो नही होता किन्तु ये एक ज़िम्मेदारी होती है जिसे इंसान स्वयं उठाता है। स्वतंत्र होते हुए भी किसी बोझ को उठाये हुए लगता है ।


क्या फायदा शादी नही करने से ?

वही बड़ा फायदा जो शादी करने को ही नुकसान मानता हो।।

क्या नुकशान शादी नहीं करने से ?

यही बात पर में वो कहना चाहता हूं जो काफी लोगों को अहसास नहीं, सामान्य रुप से ज्यादातर लोग यह मानते है कि याददास्त केवल दिमाग को होती है, जब कि सच तो ये है कि याददास्त शरीर को दिमाग से अधिक होती है और शरीर की याददास्त जब तक शरीर मिट नही जाता तब तक चलती है। अगर किसीने शारिरीक जरुरतों के लिए अलग अलग पार्टनर्स पसंद किए होंगे तो उसका दिमाग उसे भूल जाएगा लेकिन शरीर उसे भूल नहीं शकता। एक एक्जाम्पल लेते है यदि कोई युवा या युवती जो भी हो, उसको कोई आठ साल की उम्र में सवाल पूछे कि क्या शादी करोगे ? उसका जवाब शायद यही होगा, नहीं। वही सवाल उसको पन्द्रह साल की उम्र में दोबारा पूछा जाए कि क्या शादी करोगे ? उसका जवाब जो कुछ साल पहले स्पष्ट था वो अष्टपस्ट हो जाएगा, वो तय नही कर पाते कि हां कहें या ना। यही सवाल उसको बिस साल की उम्र में फिर पूछा जाए ? उसका जवाब लगभग हा होगा। क्यों ? क्योंकि यहां उसकी दिमागी याददास्त का कोई रोल ही नही है अगर होता तो जो जवाब वो आठ साल की उम्र में दे पाये वो ही जवाब फिर दोहराते। लेकिन जैसे ही पंद्रह साल ओर बिस साल की उम्र का उसका शरीर आगे बढ़ा वो उनकी याददास्त नही भुला। इस दौरान उनको अनुभव विजातीय शरीर का हो चुका होता है। और जो लोग बिना शादी किये ही अपनी शारीरिक जरुरतें पूरी करते है या होंगे वो दिमागी तौर पे अति रुढ होंगे, क्योंकि उनके शरीर की याददास्त को बहोत कुछ याद रखना पड़ता है अर्थात शरीर नही भूलता, जैसे कि किसीका शरीर हिमालय जाएगा उसे दिमाग भूल जाएगा लेकिन शरीर कभी नही भूलता, अगर उसने हिमालय में ठंड महसूस की तो फिर कहीं भी ठंड का आमना सामना होने पर उनके शरीर को हिमालय की याद आएगी, इसी लिए वो दुबारा या अधिकबार वहां जाते है या वहां जाने की सोचते है। दिमाग उसका बस उसके शरीर की यादों के आधीन हो जाता है।

इस लीये जिन्हें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक या व्यक्तिगत जरुरतें हो या न हो, किन्तु दिमाग ओर शरीर को दुरस्त रखना चाहते हो तो शादी के स्वरुप में अच्छा हमसफर जरुर साथ जरुर जोड़ ले ताकि उनका शरीर और दिमाग दौनो ही और कुछ मुकाम हांसिल करले या काम करने में उसे बेवजह थकान महसूस न हो। आजकल शादियां बहोत कम समयसीमा में या जल्दी टूट जाती है उनकी सबसे बड़ी वजह है, दोनों पार्टनर की शारीरिक याददास्त बहोत बढ़ चुकी होती है, शादी करने से पहले ही उनका शरीर उतनी सफर कर चुका होता है कि वो नया कोई बंधन स्वीकार नही कर शकता।

आरोग्य समेत कही सुचिकाए यह स्पष्ट विधान करती है कि एक स्वस्थ मन के लिए एक स्वस्थ शरीर बेहद जरुरी है। हां शादी एक जिम्मेदारी है बंधन नहीं, बंधन उसे ही लगना चाहिए जिनके शरीर ने काफी मात्रामें याददास्त इकट्ठी की हो। शादी व्यक्तिगत है जो पहले भी कभी सामाजिक बंधन नही थी और आज भी नही है। यह याद रखें कि शरीर की भी अपनी जरुरतें होती है, क्योंकि इसी शरीर मे हॉर्मोन्स बनता है, दिमाग को हॉर्मोन्स से कोई मतलब नहीं क्योंकि हॉर्मोन्स ओर दिमाग की आपस मे कभी नही पटती, दिमाग की चले तो वो हॉर्मोन्स बनने ही न दे, किन्तु शरीर को हॉर्मोन्स से ही वास्ता है और याद रखें दिमाग से कहीं अधिक तेज याददास्त शरीर की होती है। शरीर महसूस करता है उन यादोँ को और शरीर ही दबाव डालता है इंसान के दिमाग को की वो उन्हें वहाँ फिर लेजाएं जहां उनकी यादें बसी है।। केवल सेक्स ही नहीं अपितु शरीर वृद्ध भी होता है अगर उसे दूसरे एक ही शरीर की आदत डालें तो उसे उतनी शारीरिक याददास्त ख़र्च भी नही होगी और शरीर वृद्ध होने की गुँजाइश भी कम हो जाये, यदि शरीर दुरस्त रहा तो दिमाग को कभी अफसोस, ग्लानि, अपराध बोध इत्यादि व्याधियां कभी न होगी, फिर एक बार दोहरादूँ की दिमाग की याददास्त से कही अधिक तेज शरीर की याददास्त होती है।। अस्तु।।

धन्यवाद।।

भार्गव सुरेशचंद्र जोशी।

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